‘दी कोर’ का आगामी नवम्बर, 2017 अंक
- रत का हिंदू समाज गौ को परम्परा से माता मानता आया है, परन्तु गौ केवल हिंदुओं की माता ही नहीं है अपितु गौवें समस्त विश्व की माता हैं- गावो विश्वस्य मातरः। गाय समान रूप से विश्व के मानवमात्र का पालन करनेवाली माँ है। गो के शरीर में 33 करोड़ देवता निवास करते हैं, इसलिए एक गाय की पूजा करने से स्वयमेव करोड़ों देवताओं की पूजा हो जाती है। माताः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः, अर्थात् गाय सब प्राणियों की माता है और प्राणियों को सब प्रकार के सुख प्रदान करती है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है। ऋग्वेद में गाय को अघ्न्या कहा है, यानि जो मारी न जाये। अथर्ववेद में गाय को धेनुः सदनम् कहा गया है - गाय संपत्तियों का घर है। शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास की कृपा से ‘गोब्राह्मणप्रतिपालक' उपाधि प्राप्त हुई। दशम गुरु गोविन्द सिंह ने ‘चण्डी दी वार' में दुर्गा भवानी से गो-रक्षा की मांग की है : यही देहु आज्ञा तुर्क गाहै खपाऊँ। गऊघात का दोष जग सिङ मिटाऊं। यही आस पूरन करो तू हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छटै खेद भारी ।। स्वामी दयानन्द सरस्वती ‘गो करुणानिधि' में कहते हैं, ‘एक गाय अपने जीवनकाल में 8,10,660 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है, जबकि उसके मांस से 50 मांसाहारी केवल एक समय अपना पेट भर सकते हैं।' गाँधीजी ने कहा है, ‘गोरक्षा का प्रश्न स्वराज्य के प्रश्न से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। लोकमान्य टिळक ने कहा था कि स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद कलम की एक नोक से गोहत्या पूर्णतः बंद कर दी जाएगी। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था, 'भारत में गोपालन